Saturday 5 September 2020

केदारनाथ मंदिर के कुछ सुने अनसुने रहस्य...

400 साल तक बर्फ में दबे रहे केदारनाथ मंदिर हमें आजभी देखने को मिलता है। हर साल यहां लाखो भक्त भगवान शिव के दर्शन के लिए आते है। इस मंदिर कि भी विशेषताएं है जिसे सुनने वाले आश्चर्यचकित हो जाते है। यही विशेषताये आज हम आपको बताएंगे। ताकि आपको भी पता चल सके कि क्यों इतना विशेष है केदारनाथ का ये मंदिर।

 यह मंदिर कटवा पत्थरों के भूरे रंग के विशाल और मजबूत शिलखंडो को जोड़कर बनाया गया है। 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर खड़े 85 फुट ऊंचे, 187 फुट लंबे 80 फुट चौड़ा मंदिर की दीवारें 12 मोठि है। आश्चर्य ये है कि इतने भारी पथरोको इतनी ऊंचाई पर लाकर और तराशकर कैसे मंदिर को बनाया गया होगा ? खासकर इतनी विशालकाय छत मंदिर के खंबो पर कैसे रखी होगी? 
 पथरोंको एकदुसरे से जोड़ने के लिए इंटरलॉकिंग तकनीक का उपयोग किया गया है। केदारनाथ धाम में एक तरफ 22,000 फुट ऊंचा केदार, दूसरी तरफ 21,600 फुट का खर्च कुंड और तीसरी तरफ 22,700 फुट का भरतकुंड का पहाड़ है। यहां इन तीन पहाड़ों के साथ 5 नदियोंका संगम भी है। यहां मंदाकिनी, मधुगंगा, शिरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौर ये नदियां है। इन नदियों में अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है उसी के किनारे पन केदारेश्वर धाम है। यहां सर्दियों में भारी बर्फ और बरसात के दिनों में बहोत ज्यादा पानी होता है।
दीपावली महापर्व के दूसरे दिन शित ऋतु में मंदिर के द्वार 6 महीनों तक बंद कर दिए जाते है। उसी दौरान 6 महीनों तक मंदिर के अंदर दीपक जलता रहता है। पुरोहित मंदिर के पट बंद करके  भगवान के विग्रह को और दंडी को 6 महीनों तक पहाड़ के नीचे उखीमठ में के जाते है। 6 महीनों बाद मई के महीने में केदारनाथ मंदिर के पट खोल दिए जाते है तब उत्तराखंड की यात्रा शुरू होती है। 6 महीनों तक जब मंदिर बंद किया जाता है तक मंदिर के आसपास कोई नहीं रहता है। लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि 6 महीनों तक मंदिर का दीपक जलता रहता है और निरंतर पूजा भी होती रहती है। मंदिर के पट खुलने का बाद मंदिर पूरी तरह साफ सुतरा होता है जैसे पहले साफ हुआ करता था। यहां मौजूदा मंदिर के पीछे सर्वप्रथम पांडवो ने मंदिर बनवाया था। लेकिन वक्त के चलते यह मंदिर लुप्त हो गया। तब इस मंदिर का निर्माण 508 ईसा पूर्व जन्मे और 476 ईसा पूर्व देहत्याग गए आदिशंकराचार्य ने करवाया था। इस मंदिर के पीछे ही उनकी समाधी है। इसका गर्भग्रह अपेक्षा से भी प्राचीन है जिसे 80 वी शताब्दी के लगभग का माना जाता है। पहले 10 वी सदी में मालवा के राजा भोज द्वारा और फिर 13 वी सदी में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया।
16 जून 2013 की रात यहां प्रकृति ने यह केहर बरसाया था। उसी में बड़ीसे बड़ी और मजबूत इमारतें ताश के पत्तों की तरह पानी में बेहकर गई थी। लेकिन केदारनाथ का मंदिर वहीं का वहीं रहा। आश्चर्य तब हुआ जब पीछे पहाड़ों से पानी के बहाव से लुढ़कती हुई विशालकाय चट्टान आई और अचानक वो मंदिर के पीछे ही तक गई। उस चट्टान के रुकने से बाढ़ का पानी दो मार्गो में विभक्त हुआ और मंदिर ज्यादा सुरक्षित हो गया। इस प्रलय में लगभग 10,000 लोगो की मौत हुई थी। पुराणों की भविष्यवाणी के अनुसार इस समुच्चय क्षेत्र के तीर्थ लुप्त हो जाएंगे। माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा और भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। पुराणों के अनुसार वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में, " भविष्य बद्री"  नामक एक नए तीर्थ का उगम होगा। 
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हर हर महादेव...